इस ज़माने में, इस मोहब्बत ने






इस ज़माने में, इस मोहब्बत ने
कितने दिल तोड़े, कितने घर फूँके
जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं
दिल के बदले दर्द-ए-दिल लिया करते हैं

तनहाई मिलती है, महफ़िल नहीं मिलती
राह-ए-मोहब्बत में कभी मंज़िल नहीं मिलती
दिल टूट जाता है, नाकाम होता है
उल्फ़त में लोगों का यही अंजाम होता है
कोई क्या जाने, क्यों ये परवाने
यूं मचलते है, ग़म में जलते है
आहें भर भर के दीवाने जिया करते हैं

सावन मे आँखो को कितना रूलाती है
फ़ुर्क़त मे जब दिल को किसी की याद आती है
ये ज़िंदगी यूं ही बर्बाद होती है
हर वक़्त होठों पे कोई फ़रियाद होती है
ना दवाओं का नाम चलता है
ना दुवाओं से काम चलता है
ज़हर ये फिर भी सभी क्यों पिया करते हैं

मेहबूब से हर ग़म मनसूब होता है
दिन रात उल्फ़त में तमाशा खूब होता है
रातों से भी लंबे ये प्यार के किस्से
आशिक़ सुनाते हैं ज़फ़ा-ए-यार के किस्से
बेमुर्वत है, बेवफा है वो
उस सितमगार का अपने दिलबर का
नाम ले लेके दुहाई दिया करते हैं
#rajeshdahiya
गीतकार : आनंद बक्षी,
गायक : लता मंगेशकर,
संगीतकार : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,
चित्रपट : मेहबूब की मेहंदी (१९७१)

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