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बलबुद्धि विद्या देहु मोहि!  सुनहु सरस्वती मातु!

राम सागर अधम को, आश्रय तू ही देदातु!

 

मां सरस्वती को समर्पित बसंत पंचमी का त्योहार को मनाया जाएगा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसंत पंचमी का त्योहार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 16 फरवरी को पड़ रही है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करने वालों को विद्या और बुद्धि का वरदान मिलता है।


शास्त्रों के अनुसार, बसंत पंचमी के त्योहार से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु के आगमन की आहट मिलने लगती है। इस दिन सर्दी कम होने लगती है। बसंत ऋतु में फसलों, पेड़-पौधों में फूल व फल लगने का मौसम होता है, जिससे प्रकृति का वातावरण बहुत सुहाना हो जाता है। कहते हैं कि बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त होता है। ऐसे में इस दिन शुभ कार्य को करने के लिए किसी मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नहीं होता है। हालांकि इस साल ग्रह अस्त के कारण बसंत पंचमी के दिन कोई भी विवाह मुहूर्त नहीं है।
पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व फरवरी माह में पड़ रहा है. बसंत पंचमी का संबंध ज्ञान और शिक्षा से है। हिंदू धर्म में सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है। बसंत पंचमी का पर्व सरस्वती माता को सर्मिर्पत है। इस दिन शुभ मुहूर्त में सरस्वती पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है। शिक्षा और संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग इस पर्व का वर्षभर इंतजार करते हैं। 

 

बसंत पंचमी कब है?
पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का त्योहार इस वर्ष 5 फरवरी 2022 को मनाया जाएगा। इस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है। इस तिथि को बसंत पंचमी के नाम जाना जाता है।

 

बसंत पंचमी का महत्व
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु के आगमन का आरंभ होता है। बसंत पंचमी से सर्दी के जाने का क्रम आरंभ हो जाता है। इस दिन सर्दी कम होने लगती है। बसंत के मौसम में प्रकृति नए रंग में नजर आने लगती है। फसल, पौधों और वृक्षों पर नए पत्ते, बाली और फूल खिलने लगते हैं। वातावरण को देखकर आनंद का भाव मन में आने लगता है। कवि, संगीत प्रेमी और लेखकों को यह पर्व बहुत प्रिय है।

बसंत पंचमी को
अबूझ मुहूर्त भी कहते हैं
पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी पर अबूझ मुहूर्त का योग भी बनता है। इस दिन शुभ कार्य करने के लिए किसी मुहूर्त को देखने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस दिन को विद्या आरंभ करने के लिए भी उत्तम माना गया है।

 

बसंत पंचमी का महत्व
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु के आगमन का आरंभ होता है। बसंत पंचमी से सर्दी के जाने का क्रम आरंभ हो जाता है। इस दिन सर्दी कम होने लगती है। बसंत के मौसम में प्रकृति नए रंग में नजर आने लगती है। फसल, पौधों और वृक्षों पर नए पत्ते, बाली और फूल खिलने लगते हैं। वातावरण को देखकर आनंद का भाव मन में आने लगता है। कवि, संगीत प्रेमी और लेखकों को यह पर्व बहुत प्रिय है।

 

बसंत पंचमी पूजा विधि
इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन विधि पूर्वक मां सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है। सरस्वती पूजा मंत्र: सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा. 


वसंत पंचमी - समारोह
बहुत सी परंपराएं हैं जो बसंत पंचमी के उत्सव से जुड़ी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाज होते हैं जिनके साथ वे इस रंगीन त्योहार का पालन करते हैं। अधिकांश भक्त इस दिन देवी सरस्वती को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। भक्त उनके मंदिरों में जाते हैं और सरस्वती वंदना करते हैं और संगीत बजाते हैं। देवी सरस्वती रचनात्मक ऊर्जा प्रकट करती हैं और ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं उन्हें ज्ञान और रचनात्मकता का आशीर्वाद मिलता है।
यह भी माना जाता है कि पीला सरस्वती मां का पसंदीदा रंग है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं। वसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावल पारंपरिक दावत होती है। वसंत पंचमी के दिन, हिंदू लोग मां सरस्वती चालीसा पढ़ते हैं ताकि उनका भविष्य अच्छा हो सके।

कई क्षेत्रों में, सरस्वती मंदिरों को एक रात पहले भोज से भर दिया जाता है ताकि देवी अगली सुबह अपने भक्तों के साथ उत्सव और जश्म में शामिल हो सकें।
जैसा कि यह ज्ञान की देवी को समर्पित दिन है, कुछ माता-पिता अपने बच्चों के साथ बैठते हैं, उन्हें अध्ययन करने या अपना पहला शब्द लिखने और सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए एक बिंदु बनाते हैं। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को अक्षराभ्यासम या विद्यारम्भम कहा जाता है। कई शिक्षण संस्थानों में, देवी सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग में सजाया जाता है और फिर सरस्वती पूजा की जाती है, जहाँ शिक्षकों और छात्रों द्वारा सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। कई स्कूलों में इस दिन बसंत पंचमी पर गीत और कविताएँ गाई और सुनाई जाती हैं।

 

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